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हाईब्रिड किस्म, टिश्यु कल्चर, ग्राफ्टेड, उच्च तकनीक से तैयार पौधे।

-- सफेद चन्दन --

सफेद चन्दन का पेड़

चन्दन के छोटे पौधे
सफेद चन्दन के फूल

चन्दन के फूल

चन्दन की लकड़ी

चन्दन की पत्तियां

सफेद चन्दन

सफेद चन्दन का वृक्ष

चन्दन के छोटे प्लान्ट्स

चन्दन का तेल

चन्दन का फूल

चन्दन की तैयार पौध
उच्च गुणवत्तायुक्त विशेषताएं--
नियमित रूप से प्रयासरत व कुछ नया करने की दृढ इच्छा-शक्ति के साथ हिलकोरा कम्पनी लेकर आयी है सफेद चन्दन प्लान्ट, जो निम्न विशेषताओं से युक्त है-
1. भारतीय चंदन का संसार में सर्वोच्च स्थान है। इसका आर्थिक महत्व भी है। चंदन की खुशबू हर किसी का मन मोह लेती है। अन्तरराष्ट्रीय बाजार में बेहद बढती मांग और सोने जैसे बहुमुल्य समझे जाने वाले चंदन की ऊंची कीमत होने के कारण भविष्य में चंदन की खेती करना बहुत लाभप्रद व्यवसाय साबित हो सकता है।
2. यह पौधा मनमोहक सुगन्ध के रूप में जाना जाता है। विश्व में इसकी लकड़ी सबसे अच्छी मानी जाती है। अन्य देशों की तुलना में भारत में पाये जाने वाले चंदन के पेड़ों में खुशबु और तेल का अनुपात (1% से 6%) सबसे ज्यादा है। यही कारण है कि अन्तरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय चंदन की बड़ी मांग है। भारत में चंदन की रसदार लकड़ी(hart wood) की कीमत लगभग 5000 से 12000 रुपये प्रति किलो है तथा बारीक लकड़ी 800 रुपये प्रति किलो है।
3. सामान्य नाम : चंदन
उच्च वर्गीकरण : Santalum
वैज्ञानिक नाम : संतालुम एल्बम एल (Santalum Album linn.)
श्रेणी(Category) : सुगंधीय (Group)
समूह (Group) : वनज
वनस्पति का प्रकार : वृक्ष
कुल तथा विवरण : चंदन वृक्ष सन्तालेऐसी कुल का वृक्ष है। यह एक सदाबहार वृक्ष है जिसकी शाखायें लटकती हुई होती है।
प्रजातियां : एस एल्बम
4. उपयोग-
* चंदन का उपयोग तेल, इत्र, धूप, औषधी और सौंदर्य प्रसाधन के निर्माण में और नक्काशी में किया जाता है। * चंदन तेल, चंदन पाउडर, चंदन साबुन, चंदन इत्र आदि उपयोगी उत्पाद है। *अर्ध सर पीड़ा में चंदन का पेस्ट या तेल नाक में लगाकर आराम प्राप्त करने के लिए किया जाता है। * चंदन की लकड़ी का पेस्ट जलन होने पर, फोड़े में और त्वचा संबंधी रोगों में किया जाता है।
5. उपयोगी भाग- *लकड़ी, *बीज, *जड़ और *तेल
6. उत्पति-
यह मूल रुप से भारत में पाया जाने वाला पौधा है। भारत के शुष्क क्षेत्रों विंध्य पर्वतमाला से लेकर दक्षिणी क्षेत्र विशेष रूप से कर्नाटक और तमिलनाडु में पाया जाता है। महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश आदि राज्यों की जमीन चंदन की खेती हेतु उपयुक्त मानी जाती है। इसके अलावा यह इंडोनेशिया, मलेशिया के हिस्सों, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में भी पाया जाता है।
7. चंदन परजीवी वृक्ष है। इस पौधे की जड़ें हॉस्टोरिया के सहारे दूसरे पेड़ों की जड़ों से जुड़कर भोजन, पानी और खनिज पाती रहती है । चंदन के परपोषकों में नागफनी, नीम, सिरीस, अमलतास, हरड़ आदि पेड़ों की जड़ें मुख्य हैं। चंदन के आसपास अरहर की खेती हो रही है. चंदन से दूसरी फसलों पर कीटों का असर कम व पैदावार अच्छी होती है
8. भूमि-
---(1)--- चंदन वृक्ष मुख्य रूप से काली लाल दोमट मिट्टी, रूपांतरित चट्टानों में ऊगता है।
---(2)--- खनिज और नमी युक्त मिट्टी में इसका विकास कम होता है।
---(3)--- उथले,चट्रटानी मैदान पथरीली बजरी मिट्टी, चूनेदार मिट्टी सहन करते है।
---(4)--- कम खनिज युक्त मिट्टी में चंदन तेल की उपज बेहतर होती है। 
---(5)--- समुद्र सतह से 600 से 1200 मीटर की ऊँचाई पर अच्छा पनपता है।
---(6)--- किसी भी प्रकार के जलजमाव को यह वृक्ष सहन नहीं करता है।
---(7)--- चंदन 5 से 50 सेल्सीयस(Celsius) तापमान मे भी आता है।
---(8)--- 7 से लेकर 8.5 पीएच मिट्टी की किस्म में उगाया जा सकता है।
---(9)--- 60 से 160 से.मी के बीच वाले वर्षा क्षेत्र चंदन के लिए महत्वपूर्ण होते है।
---(10)-- इसे दलदल  जमीन पर नहीं उगाया जा सकता है।
9. भूमि की तैयारी-
* उचित जल की व्यवस्था हो तो साल मे कभी भी लगाया जा सकता है।
* पेड लगाने से पहले गहरी जुताई की आवश्यकता होती है।
* 2-3 बार जोतकर मिट्टी क्षमता को बढ़ाया जाता है।
* 2x2x2 फीट का गढ्ढा बनाकर उसे सूखने दिया जाता है।
* जैविक खाद या कंपोस्ट खाद का इस्तेमाल किया जा सकता है।
* 10x10 फीट की दूरी पर पौधे लगाएं। इस प्रकार एक-एकड़ में 435 पौधे लगाए जा सकते हैं।
10. खाद एवं सिंचाई प्रबंधन-
# इसे अधिक उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है।
# शुरुअाती दिनो मे फसल वृद्धि के दौरान खाद की आवश्यकता होती है।
# मानसून में वृक्ष तेजी से बढ़ते है पर गर्मियों में सिंचाई की जरुरत होती है।
# ड्रिप विधि से सिंचाई को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
# सिंचाई मिट्टी में नमी धारण करने की क्षमता और मौसम पर निर्भर करती है।
# शुरुअाती दिनों में मानसून के बाद दिसम्बर से मई तक सिंचाई करें।
11. कटाई(Harvesting), तुडाई, फसल कटाई का समय-
~ चंदन की जड़े भी सुगंधित होती है। इसलिए वृक्ष को जड़ से उखाडा जाता है न कि काटा जाता है।
~ चौथे साल से रसदार लकड़ी बनना शुरु होती है।
~ चंदन की लकड़ी में दो भाग होते हैं- (1) रसदार लकड़ी(Hart wood) और (2) सूखी लकड़ी(Dry wood)
~ दोनों की कीमत अलग–अलग होती है।
~ जब वृक्ष लगभग 12-15 साल पुराना हो जाता है तब लकड़ी प्राप्त होती है और पेड के जीवनपर्यन्त प्राप्त होती रहती है।
~ जड़ से उखाड़ने के बाद पेड़ को टुकड़ो में काटा जाता है और डिपो में रसदार लकड़ी(Hart wood) को अलग किया जाता है।
   
पौधरोपण तथा देखरेख--
* जलवायु- -5 से 50 डिग्री तक उच्च सहनशील पौधा।
* आवश्यकता- पानी, सुरक्षा तथा रोग निवारण
* खड्डा- 2 फीट बाई 2 फीट का खड्डा खोदकर छोड़ दें तथा 20 दिनों बाद इसमें सड़ी हुई गोबर की खाद, नीम व आकड़े की पत्तियां आधा किलों तथा बुहाड़े की पत्तियां 1 किलो तथा उपरी मिट्टी से भर दें।
* विशेष- यदि दीमक का प्रकोप हो तो दीमक रोधी दवाई का प्रयोग करें अन्यथा नहीं।
* फल- 5-6 बाद प्रत्येक वर्ष। औषधीय उपयोग में लिए जाते हैं।
* ऊंचाई- डेढ से दो साल में लगभग 6 फीट तक वृद्धि करता है।
* छंटाई- अतिरिक्त शाखाएं होती है, छंटाई की विशेष आवश्यकता नहीं।
* पत्तियां- पत्तियां उपजाउ होने के कारण भूमि की उर्वरा शक्ति में बढोतरी होती है।
* पानी मात्रा- पौधे की रोपाई के समय शुरूआत में 2 से 3 दिनों के अन्तराल से दिया जाता है तथा इसके तीन महीने बाद सात दिनों में एक बार लगभग 7 लीटर देना चाहिए।
* दूरी- पौधे से पौधे की दूरी चारों तरफ से 10x10 फीट रखते हैं , इसे घटाकर 9 बाई 9 भी कर सकते हैं। इस प्रकार एक सरकारी बीधा में लगभग 170 पौधे लग सकते हैं।
बहुपयोगी
* पत्तियां- एक पेड़ से लगभग 20 किलो तक सूखी लकड़ी मिल सकती है।
* लकड़ी- एक पेड़ से लगभग 20 किलो तक सूखी लकड़ी मिल सकती है।
* उपयोग- इसका वर्णन उपर के पदों में किया जा चुका है।
* मिश्र फसल- चंदन के पौधों की कतारों के बीच मटर, मिर्च, बैंगन, और बारानी क्षेत्र में बाजरा, मोंठ और मूंग की खेती लाभदायक होती है।
रिटर्न (आमदनी) एक नजर में-
चंदन धिरे धिरे बढने वाला पेड है, लेकिन समुचित जल प्रबन्धन करने पर हर साल पेड के तने का घेरा 12 से.मी. तक बढाया जा सकता है। 12 से 15 साल बाद जमीन से 5 फीट ऊपर तने का घेरा 80 से.मी. हो तो उस चंदन के पेड से 20 से 35 किलो रसदार लकड़ी (Hart wood) मिल सकती है। आज (Hart wood) का मार्केट रेट प्रति किलो रु.6000 से 12000 है।

12-15 साल बाद का रु. 6000 रेट भी मानते है। और रसदार लकड़ी (Hart wood) 20 किलो भी मिलती है तो 1 पेड से रु. 1,20,000 मिल सकते है, 1 एकड से 400 x 1,20,000 = रु. 4,80,00,000 (चार करोड़ अस्सी लाख रुपये) प्रति एकड़ केवल रसदार लकड़ी (Hart wood) से मिल सकते हैं।

   
 
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